दिल्ली, जामिया और बनारस की लड़कियों के नज़्र (वीर रस जैसा कुछ )

तोड़ दो पिंजरा, फोड़ दो भांडा!


यही न कह कर थे बहलाए?



रहना भीतर, यही भला है?



समझो अब असल अभिप्राय।







बात ये है, उनसे न होगा!



स्वयं ही सब कुछ लेना होगा



सुनो, सड़क बना लो डेरा



वख़्त न देखो, शाम-सवेरा।







समय की नंगी तलवारें हैं



सर पे लटकी, तुम्ही पकड़ लो!



समय अब नहीं कवच किसी का



तुम्ही समय के सर पे चढ़ लो!







छत सर पर अहसान नहीं है



बाप, गुरु, भगवान नहीं
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Published on October 02, 2017 21:50
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