आशाएं

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कभी जो बादल बरसे 


पिंजरे में बंद एक चिड़िया तरसे


कोई पंख देकर उसे उड़ा दे फिरसे


हर बूंद में उसकी आज़ादी बरसे।। 


वो आज़ादी नही जो देश की हो,


वो आज़ादी नही जो वेश की हो,


वो आज़ादी नही जो मोह की हो,


बस आज़ादी जो उसकी अपनी हो।। 


कहते है वो, मैं हूँ पिंजरे की रानी,


पर आज़ादी की प्यास है मेरी कहानी


मैं वो नही जो छूट के भी ना सम्बल पाऊँ


किसी पिंजरे की आदि नही, कैसे समझाओं? 


रिश्ते नाते और बंधन,


सब तभी निभा पाऊँगी


जब अपने और इन सांसों के,


रिश्ते को समझ पाऊँगी।। 


सहनशक्ति दोष है मेरा


जो अपने ही सपनो का गला घोंटने चली,


एक अन्य व्यक्ति के हट्ट के आगे,


इस चार दीवारी के अंदर ही पली।। 


बचपन में जो मेरे पंख काटे 


आज तक काटते आये है।


मेरे ही सुरक्षा के नाम पे 


मेरी आशाएं कुचलते आये हैं।। 


फिर भी सपने संजोये है


फिर भी आशाएं लगाई है 


पर इस पिंजरे से बाहर कैसे जाऊँ?


मैं छोटी सी चिड़िया, इस लोहे को कैसे हराओं? 


दिन रात पिंजरे पर चोंच मार के


इस लोहे की माया को हरा दूंगी।


तुच्छ हूं तोह कया?


इस संघर्ष में ही जान गवा दूंगी।। 


– राशि श्रीवास्तवा


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Published on July 06, 2017 09:14
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