'ऐसा तो होना ही नहीं था जानां, ऐसा तो होना ही नहीं था'।
शाहरुख़ खान की आवाज में रह गया है डाइयलोग फ़िल्म का जाने कहाँ ठहरा हुआ। सुबह नींद खुल गयी आज। छह बजे। बहुत दिन से एनफ़ील्ड चलायी नहीं थी। इधर कुछ दिन से जिम भी नहीं गयी हूँ। तो पहले स्ट्रेचेज़ किए। कपड़े बदले। बूट्स निकाले। बालों का पोनीटेल बनाया। कल तीज में नथ पहनी थी, सो नाक में दुखा रही थी, उसको उतार के रखा। आँखों में कल का ही काजल ठहरा हुआ है। बची हुयी मुहब्बत रहती है जैसे दिल में। थोड़ा और सियाह और उदास करती हुयी।
ये लगा शायद स्टार्ट ना हो। कमसे कम महीना हो गया है उसे चलाए हुए। सोचा कि गूगल करके देखूँ क्या, कि Classic 500 में चोक कहाँ पर होता है। फिर लगा कि देख लेती हूँ पहले। अगर किक से भी स्टार्ट नहीं हुआ तो फिर गूगल करेंगे। नीचे आयी तो देखा एनफ़ील्ड पर एक महीन तह धूल की जमी हुयी थी। गाड़ियों की सफ़ाई ८ बजे के आसपास होती थी। कपड़े से झाड़ पोंछ कर धूल हटायी। मुझे अपनी एनफ़ील्ड पर जितना प्यार उमड़ता है, उतना किसी इंसान पर कभी नहीं उमड़ा। जैसे महबूब का माथा चूमते हैं, मैंने हेडलाईट के ऊपर एनफ़ील्ड को चूम लिया। ऐसा करते हुए ये नहीं लगा कि पड़ोसी देखेंगे तो हँसेंगे। या कोई भी देखेगा तो हँसेगा। हाँ ये ख़याल ज़रूर आया कि कोई देख रहा है सामने खिड़की से। जब भी मैं एनफ़ील्ड स्टार्ट करती हूँ तो ऐसा लगता है। सारी आँखें इधर ही हैं
Published on August 25, 2017 20:40