साथ सा..

तुम लिखते रहो,मैं मिटाती रहूंगी
शब्द सा, याद सा, अनकहा कुछ
तुम कहते रहो, मैं छुपाती रहूंगी
वो कुछ मेरे जज़्बात सा
मैं तो वही थी,
पिघल जाती जो तेरी तर्जनी की छुअन से
ओस सा, भाप सा, भीगी बरसात सा..
तुम हो, न हो, हो भी, नही भी
हैं कुछ मेरे साथ, तुम्हारे साथ सा, पास सा..

 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on November 25, 2016 07:12
No comments have been added yet.