गोया, इश्क़ सीखा कर गया

ना उसने कभी अपनी गलती मानी, ना मैंने कभी उसे माफ़ किया.
गोया, ऐसा इश्क़ सिखा कर गया कि ना फिर किसी से कर पाई, ना किसी को करीब आने दिया।

झूठ क्या बोलना, और किससे छिपाना?
जैसी मेरी ज़िन्दगी रही वैसी हर किसी की है, हर कोई इश्क़ करता है, मरता है, जीता है, टूट जाता है और फिर इश्क़ कर लेता है..

खैर, उसको समझ नहीं आएगा, समझ आता तो जाता ही क्यों?

देख कर यह अच्छा लगता है कि मैंने उसे शायर बना दिया.. हा हा हा.. ना जाने कितनी लड़कियाँ अब उसकी शायरी पर हाय करती हैं और मैं देख कर मुस्कुरा देती हूँ, "वजूद नहीं है इसका कोई, खोखली है, तुम्हारी तरह"

चीख़ती, खाली बंध कमरे में दौड़ती हुई, छटपटाती, खीज से भरी झुँझुलाती याद.. कभी 2 मिनट में आती थी, फिर 2 घंटे, फ़ॉर 24 - 24 कर के 3-4 दिन में एक भूला भटका ख़्याल आ जाता है..

जैसे दिवाली आ रही है, उसके ऑफिस से आए सारे चॉकलेट और फ्रूटी के डब्बे मुझे टरका कर दिवाली मना लेता था..

या यूँ ही फ़ोन कर के कभी किसी ग़ज़ल का मतलब समझा देता था, बिना पूछे की मुझे सुनना है भी की नहीं..

वो बोलता रहता, मैं सो जाती, कब फ़ोन काट जाता.. पतानहीं बस हाथ में रहता सुबह तक..

(ये सब प्यार थोड़े ही था, होता तो इतने जख़्म थोड़े ही न होते।
दाग नहीं है कि दिखा दूं, हाँ याद ज़रूर हैं.. कड़वी वाली)

मैं रुक गई, वक़्त नहीं रुका, वो नहीं रुका..

अब मुझे प्यार नहीं होता, मुझे वैसा प्यार नहीं होता, "पहले प्यार जैसा","एक तरफ़ा प्यार जैसा"

उसने क्या खोया, उसको कभी समझ ही नहीं आएगा
मैंने क्या खोया?

खुद को ढूँढना बड़ा मुश्किल होता है..

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Published on October 11, 2016 12:56
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