बैठ सामने मैं हँस देती हूँ ज़िन्दगी के,
यूँ हर शख़्स मेरी ज़िन्दगी बनना चाहता है,
हँसने से नहीं पड़ी लकीरें मेरे चहरे पर,
वो चादरों की सिलवट बनना चाहता है,
मुगालतों से भरी कुछ ख़्वाहिशें सबकी,
मैं जानती हूँ वो ख्वाहिशों में क्या चाहता है,
तू भी सही, तू भी सही और तू भी सही,
वो सब ग़लत कर, ठीक होना चाहता है,
मैं जानती हूँ उन ख्वाहिशों को,
हर शख़्स मेरी ज़िन्दगी बनना चाहता है..
Published on June 10, 2016 13:12