Rijuta Gupta's Blog, page 2
February 2, 2022
मनमौजी मुहब्बत
इश्क़ हो जाए अगर, तो इश्क पर लिखा जाता नहीं
अल्फाजों की ढेरियां तो सजा देते हैं हम मगर
कोई अल्फाज़ उस एहसास को बयां कर पाता नहीं
इश्क़ हो जाए अगर, तो इश्क पर लिखा जाता नहीं
तेरा इश्क़, मेरा इश्क़, हर इश्क़ एक दूसरे से है अलग
गर मैं कुछ कह भी दूँ, तो कोई समझ पाता नहीं
कभी लफ्जों में जड़ा इश्क़ उसे भेंट किया
और कितनी ही दफा प्यार से सहलाया उसको
उसने भी इन रिवायतों को निभाया कई बार
हर बार लेकिन उन बातों का एहसास फरक था,
हर बार लेकिन उसकी आंखों का भाव फरक था
कैसे कहो फिर मुहब्बत के गीत बुनू मैं
पल पल बदलती, स्वांग नए धरती जो
मिट्टियों में कभी अठखेलियां करे
कभी रजाई में अलसायी पड़ी हो
कभी पकड़ ले, दूर जाने न दे
और कभी मेरी तरफ मुड़ कर देखती भी नहीं वो
ये मनमौजी मुहब्बत, शब्दों से परे है
स्वछंद है, निर्मल है और मुझे पसंद है
अड़ियल पतंग
आसमां की ओर रुख करे
मांझे को उसके खींचते रहे
फिर भी उड़ने को तैयार नहीं जो
बड़ी ही अड़ियल, बेअदब पतंग वो
क्या देखती नहीं, वो दूसरी पतंग को
लहराती, सरसराती जो सूरज को छूले
अल्पमति, अज्ञानी, सीखती नहीं कुछ
हाथों में मेरे अलसाई पड़ी है
मैं कोशिश करूं तो, ढील मांझे को दूं तो
उंगलियों को काटे, धूल ज़मीं की चाटे
लड़ाकू और निर्लज, किसी काम की नहीं वो
निर्लज भी ऐसी, हाथों को मेरे अनाड़ी कहे जो
बड़ी ही अड़ियल, बेअदब पतंग वो
January 25, 2022
अग्नि पिंड
कौन होते हैं वो लोग और रहते कहाँ हैं,
अग्निकुंड में जो कूद पड़ते हैं, बिना परवाह?
परवाह अगर हो भी, उसे भस्म कर देते हैं वो
उसी अग्नि में, जो जलती है उनके भीतर और बाहर
इंसान नहीं लगते, प्रतीत होते हैं एक अग्नि पिंड
इंसानी रूप धरे जो, आते हैं धरा पर
धूमिल सी ही सही, एक लौ जलाने, हर हृदय में।
– ऋजुता
January 11, 2022
मैं, सिर्फ़ मैं हूं
नहीं,
कोइ नहीं।
मैं,
सिर्फ़ मैं हूं।
बंजर, समंदर, आसमां या धरती,
बिरानों में मैं और बस्तियों में मैं हूं।
झुकती-उचकती, फिसलती-संभलती,
कभी केंद्रित, कभी दिशाविहीन मैं
रूक-रूक के चलती, चल-चल के रुकती
टूट कर भी न थमती,
बिन थके भी यदा-कदा आराम करती।
शून्य में सिमटी, उलझन में लिपटी
उदर में फिर भी ब्रम्हांड लिए विचरती,
क्योंकि
और कोई नहीं,
मैं,
सिर्फ़ मैं हूं।
– ऋजुता
माफीनामा
माफीनामा लिख रखा है,
भेज दें या इंतज़ार करें?
पाप-पुण्य चोला बदल लें तो,
कल शायद हम गुनाहगार न हों।
– ऋजुता
January 6, 2022
ख़्वाब और ख्वाइश
ख़्वाब और ख्वाइश में है फ़र्क क्या,
यही समझने में, मैं उलझता रहा।
झोला उठा जब चल पड़ा,
ख़्वाब साथ हो लिए,
ख्वाइशों ने रास्ता बदल लिया।
– ऋजुता
ढेर से ख़्वाब
ढेर से ख़्वाब, आपस में लड़ रहे
चौराहे पर खड़े, हम सोच में पड़े
इस दिशा मुड़े या उधर को चल चलें।
ख्वाबों की तकरार, तकरीरें बेशुमार
कौन सा ख़्वाब बलि चढ़े और कौन सा जिंदा रहे
चौराहे पर बैठ, हम तमाशबीन बने।
सुना होगा तुमने भी कई बार
जिसका पलड़ा भारी, उसने बाज़ी मारी
जो ख़्वाब जीता, हम उसी के पीछे चल पड़े।
– ऋजुता
December 25, 2021
ख़्वाब
खिलखिलाते ख़्वाब सताते बहुत हैं
दुनिया के रिवाजों से भटकाते बहुत हैं
क्यों नींद, भूख, प्यास खोएं इनके पीछे
चलो, सामान बटोरें और इठलाएँ ज़रा हम
जोड़ा बहुत, अब खोने से डरे हैं
आधे जिए और आधे मरे हैं
ख़्वाबों की अर्थी पे जिंदा पड़े है
April 22, 2021
बातें दम तोड़ रहीं
मन मस्तिष्क में लोट रहीं
कितनी बातें दम तोड़ रहीं
जिह्वा तक पहुंच कर भी
शब्दों में उलझती जाती हैं
नयी भाषा का आविष्कार करूं
या सीखूं के कैसे मौन धरूं
November 5, 2020
बातें
कुछ बातें लिखना, लिख कर मिटाना
शब्दों की ढेरी पे बैठ, मंद मंद मुसकुराना
सब कुछ बताना, पर कुछ कुछ छुपाना
जिल्द चढ़ा फिर उसको छपवाना
सच की परछाइयों की कल कश्ती बहाना


