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“बादशाहों की मुअत्तर ख्वाबगाहों में कहाँ
वह मजा जो भीगी-भीगी घास पर सोने में है,
मुतमइन बेफिक्र लोगों की हँसी में भी कहाँ
लुत्फ़ जो एक-दूसरे को देख कर रोने में है।”
Dharamvir Bharati, गुनाहों का देवता

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