“नित्यता क्षणों की है, पर क्षण, क्षण–भंगुर हैं। मैं भी हूँ, मुझमें जो कुछ नूतनता है, उसे मुझे इसी क्षण में कह डालना है, क्योंकि वह भविष्य की वस्तु है, मैं उसे कहे बिना रुक नहीं सकता और सोचने का समय नहीं—क्षण का अस्तित्व कितना?”
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सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'