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“उत्सव
तुम क्या कभी श्मशान गई हो अवंतिका? क्या बताऊँ तुम्हें!
ओह वह कैसा उत्सव है, कैसा आनंद, न देखो तो समझ नहीं पाओगी—
पंचांग में नहीं ढूँढ़ पाओगी ऐसा उत्सव है यह
कॉफ़ी के घूँट लेता हूँ
अग्नि को घेर जींस-धोती-पतलून-बनियान व्यस्त हैं अविराम
मद्धिम अग्नि कर रही है तेज नृत्य आनंदित होकर, धुएँ का वाद्य-यंत्र
सुन कर जो लोग अश्रुपूरित आँखों से शामिल होने आए हैं उनकी भी मौज़
अंततः शेयर बाज़ार में क्या चढ़ा क्या गिरा, फिर टैक्सी
पकड़ सामान्य निरामिष ख़रीददारी पुरोहित की दी हुई सूची अनुसार—
चलना श्मशान काँधे पर सबसे सस्ते पलंग पर सोकर लिपस्टिक लगाकर
ले जाएँगे एक दिन सभी प्रेमी मिल काँधे के ऊपर डार्लिंग…”
― Selected Poems
तुम क्या कभी श्मशान गई हो अवंतिका? क्या बताऊँ तुम्हें!
ओह वह कैसा उत्सव है, कैसा आनंद, न देखो तो समझ नहीं पाओगी—
पंचांग में नहीं ढूँढ़ पाओगी ऐसा उत्सव है यह
कॉफ़ी के घूँट लेता हूँ
अग्नि को घेर जींस-धोती-पतलून-बनियान व्यस्त हैं अविराम
मद्धिम अग्नि कर रही है तेज नृत्य आनंदित होकर, धुएँ का वाद्य-यंत्र
सुन कर जो लोग अश्रुपूरित आँखों से शामिल होने आए हैं उनकी भी मौज़
अंततः शेयर बाज़ार में क्या चढ़ा क्या गिरा, फिर टैक्सी
पकड़ सामान्य निरामिष ख़रीददारी पुरोहित की दी हुई सूची अनुसार—
चलना श्मशान काँधे पर सबसे सस्ते पलंग पर सोकर लिपस्टिक लगाकर
ले जाएँगे एक दिन सभी प्रेमी मिल काँधे के ऊपर डार्लिंग…”
― Selected Poems
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