Harishankar Parsai > Quotes > Quote > Pranjal liked it

Harishankar Parsai
“निंदा का उद्गम ही हीनता और कमजोरी से होता है. मनुष्य अपनी हीनता से दबता है. वह दूसरों की निंदा करके ऐसा अनुभव करता है कि वे सब निकृष्ट हैं और वह उनसे अच्छा है. उसके अहम् की इससे तुष्टि होती है. बड़ी लकीर को कुछ मिटाकर छोटी लकीर बड़ी बनती है. ज्यों-ज्यों कर्म क्षीण होता जाता है, त्यों-त्यों निंदा की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है. कठिन कर्म ही ईर्ष्या-द्वेष और इनसे उत्पन्न निंदा को मारता है. इंद्र बड़ा ईर्ष्यालु माना जाता है क्योंकि वह निठल्ला है. स्वर्ग में देवताओं को बिना उगाया अन्न, बे बनाया महल और बिन-बोये फल मिलते हैं. अकर्मण्यता में उन्हें अप्रतिष्ठित होने का भय रहता है, इसलिए कर्मी मनुष्यों से उन्हें ईर्ष्या होती है.”
Harishankar Parsai, तिरछी रेखाएँ

No comments have been added yet.