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“संस्कृति ने मनुष्य को हमेशा बाह्यतः बदला है। उसका अन्तरंग आज भी वैसी ही अंधी जीवन-प्रेरणओं के पीछे भागते रहने वाले पशु के समान है।”
― ययाति [Yayati]
― ययाति [Yayati]
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