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Harishankar Parsai
“एक दिन तरुणों ने उनसे कहा, “प्रातःस्मरणीयो, सुनामधन्यो! आप अब वृद्ध हुए— वयोवृद्ध, ज्ञानवृद्ध और कलावृद्ध हुए । आप अब देवता हो गए । हम चाहते हैं कि आप लोगों को मन्दिर में स्थापित कर दें । वहाँ आप आराम से रहें और हमें आशीर्वाद दें ।”
Harishankar Parsai, निठल्ले की डायरी

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