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“चाँद के माथे पर बचपन की चोट के दाग़ नज़र आते हैं रोड़े, पत्थर और ग़ुल्लों से दिन भर खेला करता था बहुत कहा आवारा उल्काओं की संगत ठीक नहीं—! 32”
― रात पश्मीने की
― रात पश्मीने की
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