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गुलज़ार
“उम्मीद भी है, घबराहट भी कि अब लोग क्या कहेंगे, और इससे बड़ा डर यह है कहीं ऐसा ना हो कि लोग कुछ भी ना कहें!! गुलज़ार”
Gulzar, रात पश्मीने की

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