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“जो सदैव इसी चिन्ता में पड़ा रहता है कि भविष्य में क्या होगा, उससे कोई कार्य नहीं हो सकता। इसलिए जिस बात को तुम सत्य समझते हो, उसे अभी कर डालो, भविष्य में क्या होगा या नहीं होगा, इसकी चिन्ता करने की क्या जरूरत? जीवन की अवधि इतनी अल्प है; यदि इसमें भी तुम किसी कार्य के लाभ-हानि का विचार करते रहो, तो क्या उस कार्य का होना सम्भव है? फल देनेवाला तो एकमात्र ईश्वर है। जैसा उचित होगा, वह वैसा करेगा। तुम्हें इस विषय में क्या करना है ? तुम उसकी चिन्ता छोड़कर अपना काम किये जाओ।”
विवेकानन्द, व्यक्तित्व का विकास (Hindi Self-help): Vyaktitwa ka Vikas (Hindi Self-help)

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