लेखक का साक्षात्कार: श्यामात्मा के लेखक श्यामल चौधरी के साथ एक बातचीत |
1. हमें अपने बारे में कुछ शब्द बताएं ।
पिता श्री ब्रह्मदेव चैधरी और माँ श्रीमती हीरा देवी के गर्भ से मेरा जन्म बिहार के तेलघी नामक ग्राम में हुआ, जो भागलपुर जिले के अंतर्गत उपस्थित है |
मेरा प्रमाणपत्रों में श्यामल देवेश नाम उपस्थित है , परन्तु अपने परिवार और समाज के गरिमामयी इतिहास की छटा को खुद से दूर ना करने के मोह में मैंने अपने पारिवारिक मनोपाधी “ चैधरी “ को खुद से जोड़ - श्यामल चैधरी नाम को रचना जगत के लिए उपयुक्त समझा |
मैंने समाज शास्त्र और सामाजिक कार्य में स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त कर कला और विज्ञान के क्षेत्र में प्रखंड समन्वयक और परियोजना प्रबंधक के रूप में कार्य किया तथा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय औषधि उत्पाद संस्थाओ में विपणन अधिकारी का पद भी संभाला जो मूलतः ह्रदय विज्ञान और मनोविज्ञान के क्षेत्र से जुड़ा रहा |
वर्तमान समय में मैं कौशल विकाश कार्यो में समाज सेवक का कार्य कर अपने अनुभव को सूक्ष्म से व्योम करने का प्रयाश कर रहें हूँ |
2. आपको कवि बनने के लिए किसने या क्या प्रेरित किया ?
ये घटना उस वक़्त की है जब मैं तीन वर्ष का था, मैं अपने बाबूजी के साथ उच्च विद्यालय खरीक गया था तुलसी जयंती के पावन अवसर पे, बाबूजी तब वहाँ शिक्षक हुआ करते थे ! अचानक ही बाबूजी ने मेरे हाथ में माइक दे कहा – तुम भी कुछ कहो |
मैं छोटा सा अबोध बालक सैकड़ो की भीड़ में हनुमान चालीसा की चार प्रारंभिक पंक्ति ही कह सका, परन्तु बगल से दुसरे माइक पे बाबूजी ने मेरा साथ दिया और पूरी हनुमान चालीसा, पंक्ति दर पंक्ति पहले वो बोले फिर मैं, मंच पे वो पहला दिन था मेरा और वो लम्हा मेरे जीवन का सबसे सार्थक लम्हा है |
फिर जैसे जैसे बड़ा हुआ बाबूजी ने कहना शुरू किया खुद से लिखना सीखो, मैं या कोई पुस्तक तुम्हारा सदेव साथ नहीं देगा ! खुद का लिखते लिखते पता ही नहीं चला के कब कविता भी लिखने लगा ! पहली कविता – ‘’ये नहीं मिलता’’ भी मैंने अपने समाज और माता पिता को स्मरण कर रचा था |
3. आपका पसंदीदा कवि कौन है ?
जहाँ रामधारी सिंह दिनकर के व्यक्तित्व और कविता के बारे में अपने पिता से बालपन से सुनता आया, वही डॉ. कुमार विश्वास के कविता ने यौवन अवस्था में मेरे कवि ह्रदय को जागृत किया |
मैं इन दोनों महानतम कवि के कविता रचना और काव्य वाचन से अत्यंत प्रभावित हुआ और इस ज्ञानविहीन मन ने खुद के शब्दों को काव्य का रूप देने की चेष्टा कर डाली |
4. इस पुस्तक को लिखने में यात्रा का सबसे अच्छा हिस्सा क्या था ?
अपने स्कूल के दिनों से ही मैं कविताएँ लिखा करता था, एक डायरी में खुद की कविताओं को संजो कर रखता जिसे अपने मित्रों के साथ साथ जिला महोत्सव और अपने पाठन स्थलों पे सुनाया करता था | परन्तु ये घटना 3 दिसम्बर 2008 की मेरे शैक्षिणिक संस्थान के वार्षिक महोत्सव की हैं , मेरे शिक्षक श्री ए. के. झा. ने मंच पे मुझे काव्य वाचन करने को कहा | मैंने डॉ. कुमार विश्वास की – ‘’ कोई दीवाना कहता है ’’ कविता के साथ साथ अपनी कविता – ‘’ मैं महान ‘’ और ‘’सच्चा प्यार ‘’ का भी काव्य वाचन किया | सरे सभा में मानो उन्माद सा बहने लगा, सारे मित्रों के साथ साथ मेरी छोटी बहन तेजस्विता ने कहा के भैया आप कविता बहुत अच्छा लिखते है इसे एक पुस्तक का रूप दीजिए |
मेरे अधिकतर कविताओ में सामाजिक अवस्था और प्रेम - वियोग की बातें होती है | कारण ये है के मैं अगर कुंदन था तो इसे आभूसन बनाया हर प्रकार के प्रेम ने और प्रेम में मगन हो अपने अन्दर के चित विरहणी की आवाज को ही मैं कविता का रूप देता हूँ | इसलिए मैंने अपनी पहली पुस्तक को अपनी आत्मा अर्थात श्यामात्मा नाम दिया |
1. हमें अपने बारे में कुछ शब्द बताएं ।
पिता श्री ब्रह्मदेव चैधरी और माँ श्रीमती हीरा देवी के गर्भ से मेरा जन्म बिहार के तेलघी नामक ग्राम में हुआ, जो भागलपुर जिले के अंतर्गत उपस्थित है |
मेरा प्रमाणपत्रों में श्यामल देवेश नाम उपस्थित है , परन्तु अपने परिवार और समाज के गरिमामयी इतिहास की छटा को खुद से दूर ना करने के मोह में मैंने अपने पारिवारिक मनोपाधी “ चैधरी “ को खुद से जोड़ - श्यामल चैधरी नाम को रचना जगत के लिए उपयुक्त समझा |
मैंने समाज शास्त्र और सामाजिक कार्य में स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त कर कला और विज्ञान के क्षेत्र में प्रखंड समन्वयक और परियोजना प्रबंधक के रूप में कार्य किया तथा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय औषधि उत्पाद संस्थाओ में विपणन अधिकारी का पद भी संभाला जो मूलतः ह्रदय विज्ञान और मनोविज्ञान के क्षेत्र से जुड़ा रहा |
वर्तमान समय में मैं कौशल विकाश कार्यो में समाज सेवक का कार्य कर अपने अनुभव को सूक्ष्म से व्योम करने का प्रयाश कर रहें हूँ |
2. आपको कवि बनने के लिए किसने या क्या प्रेरित किया ?
ये घटना उस वक़्त की है जब मैं तीन वर्ष का था, मैं अपने बाबूजी के साथ उच्च विद्यालय खरीक गया था तुलसी जयंती के पावन अवसर पे, बाबूजी तब वहाँ शिक्षक हुआ करते थे ! अचानक ही बाबूजी ने मेरे हाथ में माइक दे कहा – तुम भी कुछ कहो |
मैं छोटा सा अबोध बालक सैकड़ो की भीड़ में हनुमान चालीसा की चार प्रारंभिक पंक्ति ही कह सका, परन्तु बगल से दुसरे माइक पे बाबूजी ने मेरा साथ दिया और पूरी हनुमान चालीसा, पंक्ति दर पंक्ति पहले वो बोले फिर मैं, मंच पे वो पहला दिन था मेरा और वो लम्हा मेरे जीवन का सबसे सार्थक लम्हा है |
फिर जैसे जैसे बड़ा हुआ बाबूजी ने कहना शुरू किया खुद से लिखना सीखो, मैं या कोई पुस्तक तुम्हारा सदेव साथ नहीं देगा ! खुद का लिखते लिखते पता ही नहीं चला के कब कविता भी लिखने लगा ! पहली कविता – ‘’ये नहीं मिलता’’ भी मैंने अपने समाज और माता पिता को स्मरण कर रचा था |
3. आपका पसंदीदा कवि कौन है ?
जहाँ रामधारी सिंह दिनकर के व्यक्तित्व और कविता के बारे में अपने पिता से बालपन से सुनता आया, वही डॉ. कुमार विश्वास के कविता ने यौवन अवस्था में मेरे कवि ह्रदय को जागृत किया |
मैं इन दोनों महानतम कवि के कविता रचना और काव्य वाचन से अत्यंत प्रभावित हुआ और इस ज्ञानविहीन मन ने खुद के शब्दों को काव्य का रूप देने की चेष्टा कर डाली |
4. इस पुस्तक को लिखने में यात्रा का सबसे अच्छा हिस्सा क्या था ?
अपने स्कूल के दिनों से ही मैं कविताएँ लिखा करता था, एक डायरी में खुद की कविताओं को संजो कर रखता जिसे अपने मित्रों के साथ साथ जिला महोत्सव और अपने पाठन स्थलों पे सुनाया करता था | परन्तु ये घटना 3 दिसम्बर 2008 की मेरे शैक्षिणिक संस्थान के वार्षिक महोत्सव की हैं , मेरे शिक्षक श्री ए. के. झा. ने मंच पे मुझे काव्य वाचन करने को कहा | मैंने डॉ. कुमार विश्वास की – ‘’ कोई दीवाना कहता है ’’ कविता के साथ साथ अपनी कविता – ‘’ मैं महान ‘’ और ‘’सच्चा प्यार ‘’ का भी काव्य वाचन किया | सरे सभा में मानो उन्माद सा बहने लगा, सारे मित्रों के साथ साथ मेरी छोटी बहन तेजस्विता ने कहा के भैया आप कविता बहुत अच्छा लिखते है इसे एक पुस्तक का रूप दीजिए |
मेरे अधिकतर कविताओ में सामाजिक अवस्था और प्रेम - वियोग की बातें होती है | कारण ये है के मैं अगर कुंदन था तो इसे आभूसन बनाया हर प्रकार के प्रेम ने और प्रेम में मगन हो अपने अन्दर के चित विरहणी की आवाज को ही मैं कविता का रूप देता हूँ | इसलिए मैंने अपनी पहली पुस्तक को अपनी आत्मा अर्थात श्यामात्मा नाम दिया |