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Gora
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हिंदी BR - गोरा - रविंद्रनाथ टैगोर
चलिए ये सही है। वैसे गोरा के ऊपर एक विचार विमर्श इधर भी हुआ था। मृदुला गर्ग जी और पुरषोत्तम जी इसके ऊपर बात कर रहे हैं।https://www.youtube.com/watch?v=HWI0E...
भाई तीन चैप्टर पढ़े हैं, क्या भारी वार्तालाप है। इसका जायका लेने के लिए ब्रह्मो समाज या कुछ और विषय की जानकारी मदद करेगी?
मैंने तो अभी शुरू भी नहीं की। आज शाम को जाकर शुरू करूँगा। हाँ, उस वक्त ब्रह्मों समाज का काफी दबदबा था उधर। हिन्दू समाज में काफी कुरीतियाँ थी। शरद बाबू के उपन्यासों में ब्राह्मो समाज और हिन्दू समाज के बीच जो फ्रिक्शन था वो देखने को मिलता है।रही बात फ़िल्मी की तो ज्यादातर उपन्यास ऐसे ही मिलेंगे आपको। मैंने रविन्द्र बाबू का चोखेर बाली पढ़ा है। एकता कपूर के सीरियल का प्लाट लगा था मुझे वो।
शरत बाबू के ज्यादातर उपन्यास श्रृंखला में प्रकाशित होते थे तो हफ्ते दर हफ्ते पाठकों को बाँधने के लिये थोडा मनोरंजक होना ही पड़ता था। और गोरा भी श्रृंखला के रूप में ही पहली बार प्रकाशित हुई थी शायद।
कुछ नौ दस अध्याय पढ़े हैं। काफी मजेदार है अब तक। ब्रह्मो समाज और हिन्दू समाज का विकी पढ़ने से context (?) बढ़िया से समझ आ रहा है।
जो शब्द का हिंदी लिखने में असमर्थ रहूँगा उसके लिए (?) चिन्ह का प्रयोग करूँगा। कृपया मेरी मदद करें और उनके हिंदी शब्द आपको आते हों तो बताएँ।
हाँ पहला अध्याय पढ़ा है। धीरे धीरे ही पढूँगा। कॉन्टेक्स्ट का मतलब प्रसंग या सन्दर्भ होगा। अभी तक एक चीज देखी है। राधारानी का नाम बदल कर सुचरिता कर दिया गया था। ये पढ़कर अटपटा लगा।
Sure thing Indrani. We would be very glad to have your company :)So did you read the original Bangla edition or any other?
विकास wrote: "राधारानी का नाम बदल कर सुचरिता कर दिया गया था"राधारानी = हिन्दू नाम?
सुचरिता = ब्रह्मो नाम?
Gorab wrote: "Sure thing Indrani. We would be very glad to have your company :)So did you read the original Bangla edition or any other?"
I read the Bangla edition sometime back. I remember the story broadly, not all nuances.
Gorab wrote: "विकास wrote: "राधारानी का नाम बदल कर सुचरिता कर दिया गया था"राधारानी = हिन्दू नाम?
सुचरिता = ब्रह्मो नाम?
(or vice versa?)"
I think in many places across India, there is a tradition of changing names of girls after marriage. I know two of my colleague in my current workplace whose name was changed post marriage. I am assuming that's the case here, though I don't remember clearly.
विकास wrote: "मैंने तो अभी शुरू भी नहीं की। आज शाम को जाकर शुरू करूँगा। हाँ, उस वक्त ब्रह्मों समाज का काफी दबदबा था उधर। हिन्दू समाज में काफी कुरीतियाँ थी। शरद बाबू के उपन्यासों में ब्राह्मो समाज और हिन्दू समाज ..."Chokher Bali is a bit sensational for sure, more so for the time when it was published. But the incidents were real enough in my opinion. The frustrations and perils of an young widow were real enough. There is quite some exploration of this topic in Bengali literature.
Indrani wrote: "I think in many places across India, there is a tradition of changing names of girls after marriage."That's very strange. And so sad! Haven't come across any. Though changing surname after marriage is commonly seen.
Chokher Bali I've seen the film and loved it. Would be interesting to read it as a book. New to Bangla literature. I'm sure there is immense scope to explore here.
Gorab wrote: "Chokher Bali I've seen the film and loved it. Would be interesting to read it as a book. New to Bangla literature. I'm sure there is immense scope to explore here."
Yes, I think. from early 1700s till about independence there was a Bengali renaissance. Some lovely books were written. Lots of cultural/social progress happened too. I think nowadays we are a bit stagnated except that good films are being made.
I also went ahead and read the first chapter once more. :) The writing is sooo nice. How is the translation?
Looks good to me. Would have been difficult to translate considering the theme and intense discussions.
Indrani wrote: "Yes, I think. from early 1700s till about independence there was a Bengali renaissance. Some lovely books were written. Lots of cultural/social progress happened too. I think nowadays we are a bit stagnated except that good films are being made."True that.
Indrani wrote: "I also went ahead and read the first chapter once more. :) The writing is sooo nice. How is the translation?"It feels good. It's from second chapter.
वर्षा की संध्या में आकाश का अंधकार मानो भीगकर भारी हो गया है। रंगहीन, वैचित्र्यहीन बादलों के शब्दहीन दबाव के नीचे कलकत्ता शहर मानो एक बहुत बड़े उदास कुत्ते की तरह पूँछ के नीचे मुँह छिपा कुंडली बाँधकर चुपचाप पड़ा हुआ है।
Gorab wrote: "तुमने पढ़ना शुरू किया है विकास भाई?"अभी चौथे अध्याय में पहुँचा हूँ। गोरमोहन और विनय की धर्म सम्बन्धी तकरार पढ़ी। गोरमोहन एक कट्टरपंथी है। देखते हैं आगे चलकर इनके सम्बन्ध में क्या बदलाव आएगा।
मैं भी लालच में आकर यह किताब पड़ने लगी हूँ। साँतवे अध्याय तक पहुंची हूँ। ऑफिस में काम काज के बीच बीच में पड़ने का मन है। बहुत मज़ा आ रहा है। Phew! can't believe how difficult it is to write in Hindi. :)
Indrani wrote: "मैं भी लालच में आकर यह किताब पड़ने लगी हूँ। साँतवे अध्याय तक पहुंची हूँ। ऑफिस में काम काज के बीच बीच में पड़ने का मन है। बहुत मज़ा आ रहा है। Phew! can't believe how difficult it is to write in Hindi..."
You should use google's indic keyboard as it transliterates into devnagri what you type in roman. It's far more easier than actually writing in devnagri.
विकास wrote: "Indrani wrote: "मैं भी लालच में आकर यह किताब पड़ने लगी हूँ। साँतवे अध्याय तक पहुंची हूँ। ऑफिस में काम काज के बीच बीच में पड़ने का मन है। बहुत मज़ा आ रहा है। Phew! can't believe how difficult it is t..."
Thanks Vikas. Will do. Also struggling with forming thoughts in Hindi. Though practically I speak in Hindi all the time, but it's a mix of a lot of English with grammar-less everything-goes Mumbaiya Hindi. It is tough to properly think and write only in Hindi. :) Enjoying it nevertheless.
Indrani wrote: "मैं भी लालच में आकर यह किताब पड़ने लगी हूँ। साँतवे अध्याय तक पहुंची हूँ। ऑफिस में काम काज के बीच बीच में पड़ने का मन है। बहुत मज़ा आ रहा है। Phew! can't believe how difficult it is to write in Hindi..."
Hoot Hoot!
*whistles*
ना सिर्फ हिंदी में लिखने के लिए, किंतु हमारे साथ गोरा दोबारा पढने के लिए!
कल दो अध्याय और पढ़े कुल 12 तक पढ़ा है।जब भी गोरा का कोई भी वार्तालाप आता है, तो सारा ध्यान केन्द्रित करके पढना पड़ता है. क्या खूब लिखा है।
Indrani wrote: "विकास wrote: "Indrani wrote: "मैं भी लालच में आकर यह किताब पड़ने लगी हूँ। साँतवे अध्याय तक पहुंची हूँ। ऑफिस में काम काज के बीच बीच में पड़ने का मन है। बहुत मज़ा आ रहा है। Phew! can't believe how dif..."
You should write in Mumbaiyaa hindi. I used to love it when i used to live there. It will add a flavor to the discussion.
13 चैप्टर पढ़े हैं।अभी तक के किरदारों में गोरा ही सबसे प्रबल लग रहे हैं। मुझे परेश बाबू के सोचने का तरीका भी काफी पसंद आ रहा है।
Gorab wrote: "13 चैप्टर पढ़े हैं।अभी तक के किरदारों में गोरा ही सबसे प्रबल लग रहे हैं। मुझे परेश बाबू के सोचने का तरीका भी काफी पसंद आ रहा है।"
Yes. Gora is very strong and very confident. I am empathizing more with Vinay though. I think I am a lot like him.
Gorab wrote: "13 चैप्टर पढ़े हैं।अभी तक के किरदारों में गोरा ही सबसे प्रबल लग रहे हैं। मुझे परेश बाबू के सोचने का तरीका भी काफी पसंद आ रहा है।"
गोरा एक फनाटिक है। वो अपनी बात को सही तरीके से रख देता है लेकिन अंत में वो ऐसे धर्म गुरुओं की तरह है जो अपने करिज्मा से सबको प्रभावित कर देते हैं। देखने लायक बात ये है कि उसके माता पिता को पता है वो हिन्दू नहीं है। वो एक अंग्रेजी महिला का बेटा है लेकिन वो इस सत्य से अनभिज्ञ (ignorant) है। मैं उस वक्त का इन्तजार कर रहा हूँ जब उसे इस बात का पता चलेगा। फिर तब भी क्या वो जात पात का ऐसे ही समर्थन करेगा जैसा अब कर रहा है। टैगोर जी ने सही परिस्थिति गढ़ी है।
मैं विकास से पूरी तरह सहमत हूँ। मैंने यह किताब पहले पढ़ी है पर सौभाग्यवश ज़्यादा याद नहीं हैं। देखते हैं आगे क्या होता हैं।
हा हा ।मैं भी उसी समय का इंतज़ार कर रहा हूँ जब गोरा को हकीकत पता चलेगी।
इतना कट्टर हिन्दू है... कैसे वो विनय को face करेगा।
उससे भी ज्यादा - अपने आप को कैसे face करेगा।
सुचरिता भी गोरा के तरफ थोड़ी आकर्षित हो रही है. आगे चलके यह भी दिलचस्प मोड़ ले सकती है। PS my sense of Hindi grammar especially genders is not good. Please do correct when I go astray.
Indrani wrote: "सुचरिता भी गोरा के तरफ थोड़ी आकर्षित हो रही है. आगे चलके यह भी दिलचस्प मोड़ ले सकती है। PS my sense of Hindi grammar especially genders is not good. Please do correct when I go astray."
जी जरूर। मुझे पहले लगा था विनय और सुचरिता की जोड़ी बनेगी। लेकिन विनय और गोरा में गोरा अल्फा मेल है। वैसे जब गोरा विनय को सुचरिता के घर जाने से मना करता है तो मुझे शरत बाबू के उपन्यास गृहदाह की याद आ गई। उसमे एक कट्टर हिन्दू रहता है और लड़की ब्राह्मो समाजी रहती है।हिन्दू दोस्त अपने लिबरल दोस्त को लड़की से सम्बन्ध तोड़ने को कहता है और फिर खुद ही उसके प्रेम में पड़ जाता है। फिर प्रेम त्रिकोण बनता है। इधर भी ऐसा होने के आसार हैं। विनय तो पहले ही सुचरिता की तरफ आकर्षित है। और सुचरिता गोरा की तरफ है।
मैं भी 19 वें अध्याय पर हूँआज सुबह सुबह थोडा पढ़ा और मजा आ गया
इस उपन्यास में कहानी (प्लाट) उतना मूल नहीं है जितना की किरदारों की सोच
१०० वर्ष पहले लिखा हुआ है और अब तक एकदम सटीक
आज वो वार्तालाप पढ़ा जिसमें देश को अंधविश्वास, ओझा-तांत्रिक से मुक्त करने की बात हुई. और बहुत सही कहा गोरा ने की पढ़े लिखे लोग इसे देख कर मजाक करते हैं या अनदेखा कर देते हैं.
कोई इस चुंगल से देश को उबारने का प्रयास अपने सिर नहीं लेना चाहता
Gorab wrote: "मैं भी 19 वें अध्याय पर हूँआज सुबह सुबह थोडा पढ़ा और मजा आ गया
इस उपन्यास में कहानी (प्लाट) उतना मूल नहीं है जितना की किरदारों की सोच
१०० वर्ष पहले लिखा हुआ है और अब तक एकदम सटीक
आज वो वार्तालाप प..."
आपने सही कहा। मुझे भी अक्सर यह लगा कि रविंद्रनाथ जी अक्सर अपने समय के हिसाब से काफी ज़्यादा advanced थे। उनकी एक दूसरी उपन्यास - the home and the world, उन्होंने independence movement के दौरान किये गए अन्याय के बारे में कहा जो बहुत ही दिलचस्प है। साधारणतः हम उस समय के बारे में सिर्फ अच्छा ही सोचने के आदि है. और उस समय यह बात कहनी भी काफी मुश्किल रही होगी।
Indrani wrote: "Gorab wrote: "मैं भी 19 वें अध्याय पर हूँआज सुबह सुबह थोडा पढ़ा और मजा आ गया
इस उपन्यास में कहानी (प्लाट) उतना मूल नहीं है जितना की किरदारों की सोच
१०० वर्ष पहले लिखा हुआ है और अब तक एकदम सटीक
आज ..."
जी लेखक का काम यही होता है कि वो बिना सेंसर किए अपने समाज की स्थिति को दिखलाए। इसीलिये मैं हमेशा सेंसरशिप के खिलाफ रहा हूँ। अक्सर समाज में ज्यादा कुछ बदलता नहीं है।हाँ, पहनावा बदल जायेगा, बात चीत करने का जरिया बदल जाएगा लेकिन मूल रूप से समाज अभी भी वैसा ही है।इसलिए जब हम पुराने लेखको को पढ़ते हैं तो वो बातें हमारे वक्त भी उतनी ही प्रासंगिक लगती हैं जितनी उस वक्त रही होंगी।
इसका एहसास मुझे तब हुआ जब मैंने आर के नारायण साहब को पढ़ना शुरू किया। उस वक्त मैं कॉलेज में था और देहरादून के एक गाँव में रहता था। इधर उत्तर भारत में ज्यादातर कॉलेज गाँव के पास ही होंगे। कॉलेज नया खुला था इसलिए उधर ज्यादा विकास नहीं हुआ था।(कॉलेज खुलने के एक साल बाद ही वो गाँव से क़स्बा बनने लगा था।और अब तो काफी कुछ बदल गया उधर।) उस वक्त नारायण साहब के मालगुडी और उस गाँव में ज्यादा फर्क नहीं लगा मुझे। बच्चे साइकिल के टायर से खेलते थे, बुजुर्ग लोग पेड़ के नीचे चबूतरे पे बैठकर गप्पे लगाते थे और हम जैसे छात्र चाय की दुकान पे बैठकर पढ़ाई छोड़कर पॉलिटिक्स से लेकर फिल्मे और क्रिकेट के ऊपर बातचीत करते थे।
उस समय बहुत आसान तरीके से साहित्य का महत्व समझ में आ गया। और ये भी ऊपरी तौर से चाहे लोग जितने जुदा हों उनका कोर एक जैसा ही है। फिर चाहे वो लोग किसी भी वक्त में रहे हो।
सुचरिता गोरा की तरफ आकर्षित है। लेकिन ललिता विनय को गोरा की छाया से उभारना चाहती है।क्या वो कामयाब हो पाएगी? देखना होगा। मैं अब उन्नीसवाँ अध्याय शुरू करूँगा।
विकास wrote: "Indrani wrote: "Gorab wrote: "मैं भी 19 वें अध्याय पर हूँआज सुबह सुबह थोडा पढ़ा और मजा आ गया
इस उपन्यास में कहानी (प्लाट) उतना मूल नहीं है जितना की किरदारों की सोच
१०० वर्ष पहले लिखा हुआ है और अब ..."
मेरा भी विचार इस बारे में आप से बिलकुल मिलता है।
मेरा गांव का तजुर्बा कम है। बचपन में मैं मम्मी के साथ उनके गांव गयी हूँ पर वहां का जीवनधारा नहीं देखा ज़्यादा। आपके कॉलेज के दिनों की बात दिलचस्प लगी।
काफी अच्छा विवरण लिखा है आपने कॉलेज का।आप कह रहे हो ज्यादा विकास नहीं था? आप अकेले ही थे क्या!
... sorry for the PJ. Just kidding :P
[हिंदी में बोले तो - ग़रीब चुटकुले के लिए माफ़ी। केवल बचपना था :P]
मैंने ये भी नोट किया - सुचरिता के हर सवाल का जवाब विनय घुमावदार सवालों से कर रहा था
कोई भी सटीक जवाब नहीं दिया।
Gorab wrote: "काफी अच्छा विवरण लिखा है आपने कॉलेज का।आप कह रहे हो ज्यादा विकास नहीं था? आप अकेले ही थे क्या!
... sorry for the PJ. Just kidding :P
[हिंदी में बोले तो - ग़रीब चुटकुले के लिए माफ़ी। केवल बचपना था :..."
नहीं विकास तो बहुत थे ..... एक क्लास में दो तीन विकास थे .. :-D
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