“सुनना एक महान कला है। यह उन महान कलाओं में से एक है जिन्हें हमने अपने जीवन में विकसित नहीं किया है : पूरी तरह से किसी को सुनना। जब आप किसी को पूरी तरह से सुनते हैं—जैसा कि, मुझे उम्मीद है आप इस वक्त कर रहे हैं—तब आप अपने आप को भी सुन रहे होते हैं, आप सुन रहे होते हैं अपनी खुद की समस्याओं को, अनिश्चितताओं को, अपनी दुर्दशा, अपनी भ्रम-भ्रान्ति, सुरक्षा की अपनी चाह को, अधिकाधिक यांत्रिक होते जा रहे इस मन के सिलसिलेवार पतन को।”
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J. Krishnamurti,
Mann Kya Hai