मार्ग व्यक्तिकल्याण और लोककल्याण दोनों के लिए है। वह लोक या जगत् को छोड़कर नहीं चल सकता। भक्तिमार्ग का सिद्धान्त है भगवान् को बाहर जगत् में देखना। 'मन के भीतर देखना' यह योगमार्ग का सिद्धान्त है, भक्तिमार्ग का नहीं। इस बात को सदा ध्या न में रखना चाहिए।