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August 6, 2022
वेदशास्त्राज्ञ तत्वतदर्शी आचार्यों द्वारा परवर्तित सम्प्रदायों के अनुयायी थे। उनकी भक्ति का आधार भगवान् का लोक धर्मरक्षक और लोकरंजक स्वरूप था।
भारतीय भक्त का प्रेममार्ग स्वाभाविक और सीध है जिस पर चलना सब जानते हैं, चाहे चलें न।
उनके समय में गोरखपन्थी साधु योग की रहस्यमयी बातों का जो प्रचार कर रहे थे उसके कारण उन्हें जनता के हृदय से भक्तिभावना भागती दिखाई पड़ी-
गोस्वामीजी ललकारकर कहते हैं कि भीतर ही क्यों देखें, बाहर क्यों न देखें-
मार्ग व्यक्तिकल्याण और लोककल्याण दोनों के लिए है। वह लोक या जगत् को छोड़कर नहीं चल सकता। भक्तिमार्ग का सिद्धान्त है भगवान् को बाहर जगत् में देखना। 'मन के भीतर देखना' यह योगमार्ग का सिद्धान्त है, भक्तिमार्ग का नहीं। इस बात को सदा ध्या न में रखना चाहिए।