किसको चाहिए मुक्ति और किसको चाहिए शांति? और किसको होना है निर्मल? तुम्हें मलिन कर कौन सकता है? मलिनता तुम्हारी मौज है। विकार और वृत्तियाँ तुम्हारी दासियाँ हैं। जिस दिन तक तुमने इन्हें आज्ञा दे रखी है, जिस दिन तक तुमने इन्हें सिर पर चढ़ा रखा है, ये उछल-कूद रहे हैं। तुम्हारी अनुमति से आए हैं, तुम्हारी अनुमति से पीछे हट जाएँगे। तुम्हारा ही रूप है, तुम्हारे ही अनुचर हैं।