Suresh Vyas

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जो कुछ भी तुम्हें प्रतीत होता हो, वो तुम्हें प्रतीत हो रहा है। तुमसे बाहर कुछ नहीं है। और तुम ये माने बैठे हो कि तुमसे बाहर सत्य है, तुम ये माने बैठे हो कि यथार्थ तुमसे बाहर है। धोखा खाओगे, चोट लगेगी। आज ऐसा लग रहा है, कल वैसा लगेगा। आज लाल लग रहा है, कल नीला लगेगा, परसों पीला लगेगा और उसके बाद अदृश्य भी हो सकता है। तुम इसी भरोसे में रह गए कि लाल है तो धोखा खाओगे, चोट लगेगी, जीवन दुःख से भर जाएगा।
Ashtavakra Geeta / अष्टावक्र गीता (Hindi Edition)
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