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— “लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
pradeep vashistha liked this
गई। जानवर भी लगातार एक ही काम करते—करते सीख जात हैं, हम तो फिर भी आदमी हैं। आदमी के लिए कुछ भी काम कठिन ना है, करत—करत अभ्यास से जड़मति होत सुजान, रसरी आवत जात से सिल पर होत निसान।”
“सर दुनिया में अमीर और गरीब दो वर्ग हैं। अमीर वर्ग अपने लालच के लिए गरीब वर्ग का शोषण करता है, इसलिए गरीब वर्ग को अपने अधिकार अमीरों से छीन लेना चाहिए, यही कार्ल मार्क्स कहते हैं।”
विवेकानन्द कहते थे कि अपने आप को कमजोर मानने से बड़ा पाप कोई दूसरा नहीं
जीवन में अब कभी भी तुम्हारे पर्सेंट से तुम्हारे व्यक्तित्व और तुम्हारी योग्यता का आकलन नहीं होगा, इसलिए अपनी पुरानी कमजोरियों को झूठ के सहारे छुपाने के स्थान पर सच्चाई के साथ उनका सामना करो।”
“आज इस देश की सबसे बड़ी समस्या बेईमानी है, सब स्वार्थी हो गए हैं। सबको अपनी फ़िक्र है, देश की फ़िक्र किसी को ना है।”
“जो घरबार की फ़िक्र न करके देश की फ़िक्र करते हैं वह पागल ही तो कहलाते हैं। मेरी माँ सही कहती है कि मेरा पिता पागल है। मैं ऐसे पागल पिता से बहुत प्यार करता हूँ। मेरे पिता मेरे आदर्श हैं।”
वे बढ़ती हैं अपने पुरुषार्थ से, अपने धैर्य से, अपने समर्पण से, अपनी मेहनत से, अपने त्याग से, अपनी प्रबल इच्छाशक्ति से।
आदमी यदि टाइम का सही मेनेजमेंट कर ले, तो समय की कमी नहीं रहती। भगवान एक रास्ता बंद करता है तो दूसरा जरूर खोलता है।”
“बाहर का अंधकार समस्या नहीं है पांडे, समस्या तब होती है जब हमारा मन सुविधाओं के लालच में समझौतों के अंधकार में डूब जाता है।”— मनोज जैसे किसी गहरे तल से बोल रहा था।
“उड़ान हमेशा ऊँची भरना चाहिए, नहीं मिलेगी मंजिल तो कोई गम नहीं, पंख तो मजबूत होंगे।
“पहला बिंदु, प्यार एक जोंक है जो विद्यार्थी से उसी समय चिपकती है जब उसे अपना सबसे ज्यादा समय पढ़ाई में देना होता है। दूसरा, प्यार व्यार कुछ नहीं होता, यह महज अभावों का आकर्षण है। अभाव माने समझ रहे हैं ना पांडे? जो चीज हमारे पास नहीं होती उसका आकर्षण।”
“मेरे लिए प्यार आंतरिक शक्ति है, जो मुझे पढ़ने के लिए प्रेरित करती है।”
“कॉम्पटीशन की तैयारी करने वालों के लिए प्रेमिकाएं मीठा जहर होती हैं, जिनसे शुरुआत में ही हाथ जोड़ लेना चाहिए, नहीं तो ये जान लेकर ही छोड़ती हैं।”
उसी तरह सफलता को भी लोग ठीक से नहीं समझते, क्या शक्ति, सत्ता, धन, प्रतिष्ठा प्राप्त करना ही सफलता है? मुझे लगता है, संतुष्टि और आनन्द के साथ देश हित में कोई भी काम आप पूरी ईमानदारी से करें तो आप सफल हैं। फिर चाहें आप थानेदार बन जाएँ या सुबह—सुबह सड़क पर झाड़ू लगाएं।”—त्यागीजी ने कहा।
“मुख्य परीक्षा में ऑब्जेक्टिव प्रश्न नहीं पूछे जाते, बल्कि निबंधात्मक उत्तर परीक्षा में लिखने होते हैं, इसलिए प्रिलिम्स की पढ़ाई की स्ट्रेटेजी मुख्य परीक्षा के किसी काम की नहीं है। मुख्य परीक्षा के लिए यही स्ट्रेटेजी है कि अधिक से अधिक याद करो, अधिक से अधिक लिखकर देखो। परीक्षा के पुराने पेपर सॉल्व करो। बहुत सारे मॉक टेस्ट दो।”
क्योंकि कोई भी असफलता अंतिम नहीं होती। हर असफलता के बाद एक सफलता जरूर मिलती है।”
किन्हीं दो लोगों की तुलना उनके परिणामों से नहीं होनी चाहिए, बल्कि उनकी परिस्थितियों और सुविधाओं के आधार पर भी होनी चाहिए।”
‘उठो जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक मत रुको’, मैं अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक रुकूंगा नहीं।”
“आईएएस, आईपीएस, शिक्षक, लाइब्रेरियन, ये सब जिन्दगी के लक्ष्य नहीं हो सकते। होने भी नहीं चाहिए। ये तो लक्ष्य प्राप्ति के साधनमात्र हैं, वास्तविक लक्ष्य है—इस देश की इमानदारी से सेवा करना। फिर चाहे आईपीएस बना जाए या कुछ और।—अपनी बात पूरी करके मनोज चुप हो गया।”