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करत—करत अभ्यास से जड़मति होत सुजान, रसरी आवत जात से सिल पर होत निसान।”
विवेकानन्द कहते थे कि अपने आप को कमजोर मानने से बड़ा पाप कोई दूसरा नहीं है।
यहाँ आकर मुझे लग रहा है कि मैं जीवन में कुछ भी कर सकता हूँ, असीम शक्ति मेरे भीतर भर गई है। देश से बड़ा दूसरा कोई धर्म नहीं है और देश भक्ति से बड़ा दूसरा कोई लक्ष्य नहीं हो सकता। यहाँ आकर मैंने संकल्प ले लिया है कि देश सेवा करना ही मेरा लक्ष्य है। ”
और तुम्हारी योग्यता का आकलन नहीं होगा, इसलिए अपनी पुरानी कमजोरियों को झूठ के सहारे छुपाने के स्थान पर सच्चाई के साथ उनका सामना करो।”
निराशा का कोई कारण ही नहीं है। चारों तरफ आनन्द के क्षण बिखरे पड़े हैं बस हमें उन्हें समेट लेना हैं। हालात तो परेशान करने के लिए ही होते हैं। पर मुझे उल्लास और आनन्द की तलाश नहीं छोड़नी चाहिए।
प्रतिभाएं अकारण आगे नहीं बढ़तीं। वे बढ़ती हैं अपने पुरुषार्थ से, अपने धैर्य से, अपने समर्पण से, अपनी मेहनत से, अपने त्याग से, अपनी प्रबल इच्छाशक्ति से।
आदमी यदि टाइम का सही मेनेजमेंट कर ले, तो समय की कमी नहीं रहती। भगवान एक रास्ता बंद करता है तो दूसरा जरूर खोलता है।”
“बाहर का अंधकार समस्या नहीं है पांडे, समस्या तब होती है जब हमारा मन सुविधाओं के लालच में समझौतों के अंधकार में डूब जाता है।”
“उड़ान हमेशा ऊँची भरना चाहिए, नहीं मिलेगी मंजिल तो कोई गम नहीं, पंख तो मजबूत होंगे।
“यदि प्रेम है तो विचलन का तो प्रश्न ही नहीं उठता, प्रेम तो स्थिर करता है, एकाग्र करता है। मन की सारी नकारात्मकताओं को दूर करता है। यदि आप प्रेम में हैं तो आप जो भी कार्य कर रहे हैं वह उत्साह से करेंगे, प्रसन्नता से करेंगे, पवित्रता से करेंगे, एकाग्रता से करेंगे। “— त्यागीजी ने प्रेम पर अपने विचार व्यक्त किए।
अपनी क्षमता के साथ न्याय न करना खुद से और इस समाज से अन्याय करना होगा। सारे अपमानों से बदला लेने का एक और केवल एक ही तरीका होता है, वह है सफल होकर दुनिया के सामने खड़े हो जाना।”
कोई भी असफलता अंतिम नहीं होती। हर असफलता के बाद एक सफलता जरूर मिलती है।”
किन्हीं दो लोगों की तुलना उनके परिणामों से नहीं होनी चाहिए, बल्कि उनकी परिस्थितियों और सुविधाओं के आधार पर भी होनी चाहिए।”