More on this book
Community
Kindle Notes & Highlights
Read between
November 4 - December 8, 2023
विवेकानन्द कहते थे कि अपने आप को कमजोर मानने से बड़ा पाप कोई दूसरा नहीं है।
“उड़ान हमेशा ऊँची भरना चाहिए, नहीं मिलेगी मंजिल तो कोई गम नहीं, पंख तो मजबूत होंगे।
मनोज ने श्रद्धा से कहा— “हो सकता है कि यह झूठ बोल रहा हो। मुद्दा यह नहीं है कि ये सही हैं या गलत। मुद्दा यह है कि मेरी भावना क्या है? मुझे ये जरूरतमंद दिख रहे हैं। मुझे इनकी मदद करनी है बस। मेरे मन में इस समय इनकी मदद करने के संकल्प के अतिरिक्त कोई संदेह आ ही नहीं रहा। मनोज ने उस आदमी से कहा— “चिंता मत करो। तुम्हें एक हजार रुपए मिल जाएंगे।”
विवेकानन्द जी ने कहा है कि नर सेवा ही नारायण सेवा है।”
अपनी क्षमता के साथ न्याय न करना खुद से और इस समाज से अन्याय करना होगा।
क्योंकि कोई भी असफलता अंतिम नहीं होती। हर असफलता के बाद एक सफलता जरूर मिलती है।”
उसमें कहा गया था कि जिसने आपका कभी भला किया हो, उसका साथ कभी मत छोड़ो।”
किन्हीं दो लोगों की तुलना उनके परिणामों से नहीं होनी चाहिए, बल्कि उनकी परिस्थितियों और सुविधाओं के आधार पर भी होनी चाहिए।”
“आईएएस, आईपीएस, शिक्षक, लाइब्रेरियन, ये सब जिन्दगी के लक्ष्य नहीं हो सकते। होने भी नहीं चाहिए। ये तो लक्ष्य प्राप्ति के साधनमात्र हैं, वास्तविक लक्ष्य है—इस देश की इमानदारी से सेवा करना। फिर चाहे आईपीएस बना जाए या कुछ और।—अपनी बात पूरी करके मनोज चुप हो गया।”