“माँ मैंने तुम्हारी शादी तुम्हारे यंत्र के साथ कर दी। तुम्हारे सारे जीवन की व्यवस्था मैं कर जाऊँगा। तुम मन प्राण से बजाओ। जनता के सामने बजा कर तुम्हें अर्थ-उर्पाजन करना नहीं होगा। तुम अपने चिदानंद के लिए बजाओगी और अपना वादन सुनाओगी उस ऊपर वाले भगवान को। संगीत ही तुम्हारा पित होगा। साज़ बजाकर कृपया मत कमाना, वरना असल संगीत नहीं रहेगा।