यह कोई चीज नहीं है, यह भौतिक नहीं है। यह भौतिक प्रकृति से परे है। इसका वर्णन या परिभाषा नहीं दी जा सकती। इसलिए इसके बारे में योग केवल अनुभव के संदर्भ में ही बात करता है। जब हम भौतिक से परे इस आयाम को छूते हैं, हम आनंद में डूब जाते हैं। इसलिए आनंदमय कोष को ‘आनंद शरीर’ कहा गया है।

