छोड़ देना चाहिए लिखना और फिर शब्दों पर लट्टू होना, कुछ बदमाश शब्दों को दफा करना, सुन्दर शब्दों के बिस्तरों में पड़े रहना। छोड़ देना चाहिए कि हर बीतते दिन पसीना और ठंडा होता जाता है, हर बीतते दिन धौंकनी और तेज़, डॉक्टर ने कहा, छोड़ देना चाहिए कि इन काल्पनिक घटनाओं का तनाव, अघटित की आशंका, रोज़-हर-रोज़ थोड़ा-थोड़ा दिमाग खाए जाती है– थोड़ा और थोड़ा भौंहों के ऊपर दबाव बढ़ता जाता है।

