लेकिन, वे यह भी स्वीकार करते हैं कि वेदों में ‘शिश्न-देवों’ की अवहेलना और हड़प्पा सभ्यता में घोड़े का अभाव इस सभ्यता को वैदिक सभ्यता के रूप में पहचानने में समस्या पैदा करते हैं। उनका ख़याल है कि जब तक हड़प्पा की लिपि पढ़ नहीं ली जाती, यह विवाद जारी रहेगा।