इसकी सशक्त पुष्टि प्राचीन डीएनए पर आधरित आनुवांशिक अध्ययनों से हो चुकी है, जो संकेत करते हैं कि इंडो-यूरोपियन भाषाओं को यूरोप में लाने वाले घास के मैदान के चरवाहे हड़प्पा काल के आख़िरी दौर में ही हिन्दुस्तान पहुँचे थे और अपने साथ संस्कृत का आरम्भिक रूप और उससे संबंधित सांस्कृतिक अवधारणाएँ और बलि जैसे अनुष्ठानों की प्रथाएँ लेकर आए थे।