ABHISHEK KUMAR

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दूसरे शब्दों में, इंडो-यूरोपियन भाषा-भाषियों के दक्षिण एशिया पहुँचने के बाद, हड़प्पाइयों की भाषा दक्षिण भारत तक सीमित रह गई थी, जबकि हड़प्पाइयों की संस्कृति और मिथक भारतीय-आर्य-भाषा-भाषी नवागन्तुकों की संस्कृति और मिथकों में मिल गए, जिससे उस एक अनूठी, समन्वयात्मक परम्परा का निर्माण हुआ, जिसे आज भारतीय संस्कृति के सारभूत हिस्से के रूप में देखा जाता है।
Aarambhik Bharitya: Hamare Purvaj Kaun they? Unka Aagman Kahan se Hua Tha? (Hindi Edition)
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