पाँचवीं सदी के आरंभ में फाहियान भारत आए थे। उन्होंने अपनी पुस्तक के इक्कीसवें खंड में कोनागमन बुद्ध के स्तूप का आँखों देखा वर्णन किया है। कोनागमन बुद्ध का स्तूप मौर्य काल से काफी पहले मौजूद था। इतना पहले कि वह अशोक के समय तक जर्जर हो चुका था। इसीलिए अशोक को उसकी मरम्मत करानी पड़ी। स्तूप निगाली गाँव के पास था। अशोक ने कोनागमन बुद्ध की स्मृति में स्तूप के पास स्तंभ लिखवाया है। स्तंभ पर " बुधस कोनाकमनस " लिखा है। ( चित्र -17

