Abhishek

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रात की पार्टियों में हमेशा एक क्षण आता था, जब किसी को कुछ नहीं मालूम होता था, बाहर-भीतर क्या हो रहा है। बातों के झिलमिले में बाकी दुनिया झर जाती थी। सिर्फ एक हल्का-सा शोर अदृश्य लहरों-सा ऊपर उठता था, नीचे गिरता था, एक सफेद तलछट-सा छोड़ जाता था।
एक चिथड़ा सुख
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