कुछ लोग अपने अकेलेपन में काफी सम्पूर्ण दिखाई देते हैं—उन्हें किसी चीज़ की ज़रूरत महसूस नहीं होती। किन्तु बिट्टी में कोई ऐसा मुकम्मिलपन नहीं दिखाई देता था—वह जैसे कहीं बीच रास्ते में ‘ठिठकी-सी’ दिखाई देती थी, जबकि दूसरे लोग आगे बढ़ गए हों। बीच में जो लोग ठहर जाते हैं, उनमें अकेलापन उतना नहीं, जितना अधूरापन दिखाई देता है—जैसे वे सड़क पर कुछ देख रहे हों और यह देखना भी चलने का ही हिस्सा जान पड़ता था।