जैसे समय कोई ऊँचा पहाड़ है और सब लोग अपनी-अपनी पोटलियों के साथ ऊपर चढ़ रहे हैं—हाँफ रहे हैं, बिना यह जाने—कि ऊपर चोटी पर—वे सब हवा में गायब हो जाएँगे—और धूल में लदी-फँदी पोटलियाँ—पता नहीं, उनमें क्या भरा है, प्रेम, घृणा, निराशाएँ, दुख—नीचे लुढ़का दी जाएँगी, जिन्हें दूसरे लोग पकड़ लेंगे और फिर उन्हें पीठ पर ढोते हुए ऊपर चढ़ने लगेंगे…