Amit kumar Shukla

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आधी नींद की बुड़बुड़ाहट में हम कितना कुछ पूछते हैं, खाली दीवारें उन सब प्रश्नों को सोख लेती हैं। दूसरे दिन—सुबह की चकमकाहट में—कुछ भी याद नहीं रहता; हम सोचते भी नहीं, पिछली रात कौन-से शर्म और पछतावे ने सिर उठाया था।
एक चिथड़ा सुख
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