बस-स्टैंड, फायर ब्रिगेड की बिल्डिंग, स्टेट्समैन का चौराहा, जलती-बुझती ट्रैफिक लाइट…। बिट्टी चलती जा रही थी, और वह उसके पीछे भाग रहा था, हाँफ रहा था और तब उसे लगा, जैसे यह असली दुनिया नहीं है, यह कोई स्वप्न है, ये गीली सड़कें, ये भीड़, ये बारिश के चहबच्चे, बारहखम्भा रोड के पेड़…कुछ भी वास्तविक नहीं था। सिर्फ हाँफती हुई साँसें सही हैं, बिट्टी की सिसकियों से बँधी हुई, जिन्हें वह कीचड़ में भागते हुए अपने साथ घसीटे ले जा रही थी…