Indra  Vijay Singh

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बिट्‌टी उसके बालों से खेल रही थी। ध्यान कहीं और था, उँगलियाँ कहीं और। निगाहें कहीं न थीं। वह उसकी छुअन से जान गया कि वह उसे नहीं सुन रही। वह अधिकांश समय नहीं सुनती थी। कई बार ऐसा होता था कि दोनों चुपचाप किचन में बैठे रहते थे। गरमाई में सिकुड़े हुए। बिट्‌टी की बरसाती में रसोई ही एक ऐसी जगह थी, जो इलाहाबाद की याद दिलाती थी।
एक चिथड़ा सुख
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