Indra  Vijay Singh

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गुम्बद के ऊपर दो चीलें उड़ रही थीं, दुपहर के सन्नाटे को गहराते हुए—एक चुप उड़ान—जो उसके भीतर एक कुआँ-सा खोदने लगती थीं।
एक चिथड़ा सुख
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