कुछ नहीं आने पर भी सब कुछ लिखकर आने की आदत थी- उसे बदला। आंसर की प्रॉपर फ़्रेमिंग जानी। छोटे से पैराग्राफ़ में इंट्रोडक्शन फिर उसका विस्तार और अंत में मेरे ‘two cents’। हर उत्तर में डायग्राम, फ़्लो चार्ट या मैप बनाने की आदत डाली। अंडरलाइन करके ज़रूरी प्वॉइंट को हाईलाइट किया। स्पीड बढ़ाई। पढ़ाई के प्रेशर के बावजूद अपना ‘कूल’ बनाये रखा। सब पेपर्स पिछली बार से कहीं बेहतर गए।