को ही कृष्ण बनाना होगा और ख़ुद को ही अर्जुन। मुश्किल था। पर करना तो था ही। या तो ज़िंदगी भर रोया जा सकता था, बहाने बनाए जा सकते थे या हमारे उस सपने को पूरा करके दिखाया जा सकता था। जीत की दास्ताँ सुनना सब को अच्छा लगता है, असफलता के पीछे का रोना कोई सुनना नहीं चाहता।