ऐसा नहीं कि किसी को अंदेशा नहीं था कि क्या बोला जा रहा है और क्यों। पर ईगो कुत्ती चीज़ जो ठहरी। भाषा, जो अब तक थी गंगोत्री से निकलने वाली भागीरथी, अपनी मर्यादा लांघ कर बनारस से बहने वाली ‘अस्सी’ बन गई। ग़ुस्से में हम, हम नहीं रहते, कुछ और बन जाते हैं। कुछ देर के लिए सब कुछ भूल जाते हैं।