मैंने अपनी गृहस्थी आने वाले महीनों के लिए वहीं लाइब्रेरी में बना ली थी। टेबल को दीवार से चिपका रखा था। अगल-बग़ल किताबों का ढेर लगाकर हर तरफ़ से ख़ुद को क़ैद कर रखा था- किसी भी तरह से नज़र को भटकने से बचाने के लिए। अघोरी साधु की तरह दाड़ी, बाल सब बढ़े हुए। हफ़्ते में एक-आधा बार कभी नहाना। गज़नी के आमिर ख़ान की तरह हाथ और सीने पर पेन से ज़रूरी फ़ैक्ट्स गोद रखे थे। ताकि कपड़े बदलते वक़्त कभी नज़र पड़े तो याद रहे। करंट अफ़ेयर्स के लिए आल इंडिया रेडियो पर हर शाम चाय के साथ न्यूज़ सुनता और रात को न्यूज़ एनालिसिस। बिपिन चंद्र से लेकर रामचंद्र गुहा, मिश्रा-पूरी से लेकर Goh Cheng Leong, सब दोस्त बन
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