Dharmendra Chouhan

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मेरे मन में आंतरिक उथल-पुथल से ग्रस्त एक छत्तीसगढ़ जा बसा था और एक कश्मीर भी-जो तनाव की बाहरी घुसपैठ से ख़ुद को बचा पाने में अक्षम था। एक पंजाब भी, जो नशे में चूर होकर अपने सभी गम भूल जाना चाहता था। मुझे वो अब तक अपनी मुट्ठी में भींचकर रखती थी, जैसे कि मैं कोई तितली हूँ, जो उड़ जाऊँगा। पर मैं अब उसकी नरम हथेलियों की क़ैद में रहना चाहता था, ज़िंदगी भर। मुझे आज़ादी की सज़ा नहीं चाहिए थी।
Hazaaron Khwahishen (Hindi Edition)
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