Hazaaron Khwahishen (Hindi Edition)
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“मैं सखी और तुम सखा। जैसे ये अरुंधती और वशिष्ठ हैं न, हम भी एक दूसरे की धुरी का केंद्र रहेंगे।” • सुख या दु:ख, चाहे मेरा या तुम्हारा, मिलकर बाटेंगे। रास्ते कितने भी ऊबड़-खाबड़ क्यों न हों, साथ सफ़र तय करेंगे। • मैं कितना भी रूठ जाऊँ, मेरी प्रॉब्लम नहीं। तुम मुझे कैसे भी मनाओगे। फिर भी न मानी तो चॉकलेट केक बनाओगे। • वो सभी बातें जो कहीं-न-कहीं हमारे बीच दूरियाँ लेकर आएँ, उनसे हम ख़ुद दूरी बना लेंगे। • हम सभी ख़्वाहिशें, सभी सपने मिलकर देखेंगे और उन्हें मिलकर पूरा भी करेंगे।”
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जब हम प्यार में होते हैं तो यार दोस्तों को भूल जाया करते हैं। आसपास की गतिविधियों से, देश और दुनिया में हो रही किसी भी घटना से बेख़बर किसी काल्पनिक दुनिया में जीते हैं। मैं अब बढ़ते पेट्रोल के दाम पर अपनी नाक नहीं सिकोड़ता। और न ही खाने पर लगने वाले सर्विस चार्ज पर कोई सवाल उठाता था। शायद इसे ही रिलेशनशिप का ‘हनीमून’ पीरियड कहते हैं।
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इसी बीच ‘संत वैलेंटाइन दिवस’ का आना हुआ। दरअसल वैलेंटाइन वो महान ऋषि थे जिन्होंने रोम शासन के दौरान चोरी-छुपे कई युगलों का प्रेम विवाह कराया था। जिसकी वजह से उन्हें सज़ा-ए-मौत मिली। आज के इस भौतिकवादी युग में लोग उनका बलिदान भुला चुके हैं। मोहब्बत एक बड़ा मार्केट है और आज के लड़के प्यार के इस बाज़ारवाद में महज़ उपभोक्ता हैं, जिन्हें किसी भी हाल में अपनी प्रियतमा को महँगे गिफ़्ट्स देकर ‘सेटिंग’ कर लेनी हैं।
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हमाम में साले सब नंगे हैं।”
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“तुम उस माहौल में कभी रहे नहीं इसलिए शायद तुम्हें पता नहीं। मैंने अपनी आँखों से शोषण होते हुए देखा है। नानी के गाँव में आज भी छोटी जात का आदमी हम ब्राह्मणों के कुएँ का पानी नहीं पी सकता। मंदिर में नहीं घुस सकता। गाँव में अगर कोई बीमार होता है तो सबसे पहले अपनी जात के डॉक्टर के पास जाता है। कितनी जगह पर इंटरव्यू में सिलेक्शन जात देखकर किया जाता है। तुम कभी अपने बनाए क़िले से बाहर निकलो तो पता चलेगा कास्ट डायनामिक्स। कैसे ब्राह्मण, भूमिहर, ठाकुर, यादव, जाटव-सब एक ही गाँव में रहकर अपने से नीचे वालों को दबाने में लगे हैं। जहाँ हमारा देश चाँद और मंगल पर पहुँचने के सपने देख रहा है, हमारी मानसिकता ...more
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“घर पर बचपन से बहुत लड़ाई झगड़े देखे हैं। क्या हम हमेशा ऐसे ही लड़ेंगे?” उसने उदास मन से पूछा। “हाँ, अगर ख़ुद को दूसरे से बड़ा समझेंगे। अगर अहम को हावी होने देंगे। अगर एक-दूसरे पर शक करेंगे। पर हम ऐसी कोई भी नासमझी नहीं करेंगे।”
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सर्दियाँ, गर्मियों की छुट्टी पर जाने को थी।
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थाली के बैंगन
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कोशिश तो करो। कौन-सा कैटरपिलर को पता होता है कि वह भी किसी दिन रंग-बिरंगी तितली बनकर उड़ेगा?”
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शायद जब पता न हो कहाँ जाना है, राह आसान हो जाती है और मज़ेदार भी।
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आख़िर, जो मज़ा रास्तों में है, मंज़िल में कहाँ।
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भले ही कितनी मुश्किल आए, पर मन को सुकून वही राह देती है, जो ख़ुद तलाशी जाए।
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“दिल्ली कोई रहने की जगह है।” घोड़े वाले ने कहा। “आप लोगों ने तो देखा नहीं होगा पर यहाँ देखो। आसमान नीला होता है, पत्ते हरे होते हैं। हवा और पानी का कोई रंग नहीं होता। दिल्ली में तो हवा से लेकर यमुना सब कुछ काला ही नज़र आता है। लोगों के दिलों की तरह।”
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ख़याल का पौधा बाज़ार में नहीं बिकता। और बिना तजुर्बे और मेहनत के वह भविष्य का पेड़ नहीं बनता।
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सर्विसेज़ का असल मतलब है आईएएस (IAS), आईपीएस (IPS), आईएफएस (IFS), और हद्द-से-हद्द आईआरएस (IRS)। बाक़ी रेलवे और टेलीकॉम तो यहाँ के नकुल और सहदेव हैं-कोई नहीं पूछता।
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इस देश में भसड़ मचाने वालों को हम आईएएस एस्पिरेंट्स के बारे में भी थोड़ा सोचना चाहिए। किसी को नया राज्य चाहिए, किसी को नया देश, किसी को मंदिर, किसी को मस्जिद, किसी को शहर के नाम से ही प्रॉब्लम है। किसी भी टुच्ची चीज़ के लिए लोग सड़कों पर उतर पड़ते हैं। इनकी फ़रमाइशों की लिस्ट ख़ामख़ा हमारे लिए कर्रेंट अफेयर्स का सिलेबस बढ़ा देती हैं।
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एक बात तो है: कर्म कितने भी काले क्यों न हो, जीवन कितना रंगीला क्यों नहीं, हमारे नेता किसी महात्मा की तरह हमेशा सफ़ेद कपड़े पहनते हैं।
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मैं हमेशा सोचता था कि जितना छोटा शहर सोच उतनी ही छोटी। पर मैं ग़लत था। शहर चाहे बड़ा हो या छोटा, फ़र्क़ नहीं पड़ता। सोच कुछ लोगों की हमेशा ही छोटी रहती है।
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जैसा पिंटू ने पहले ही चेताया था, यह सब एक ‘वाइल्ड एनिमल’ को डोमस्टिकेट किए जाने की प्रक्रिया थी, जिससे मैं अब तक अनजान था।
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ऐसा नहीं कि किसी को अंदेशा नहीं था कि क्या बोला जा रहा है और क्यों। पर ईगो कुत्ती चीज़ जो ठहरी। भाषा, जो अब तक थी गंगोत्री से निकलने वाली भागीरथी, अपनी मर्यादा लांघ कर बनारस से बहने वाली ‘अस्सी’ बन गई। ग़ुस्से में हम, हम नहीं रहते, कुछ और बन जाते हैं। कुछ देर के लिए सब कुछ भूल जाते हैं।
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“नौसिखिये जहाँ सिर्फ़ प्रीलिम्स को अपना सब कुछ मानकर चलते हैं वहीं सीरियस प्लेयर्स सिर्फ़ और सिर्फ़ मेन्स को टारगेट रखते हैं”- ‘मेन्स
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“एक तो तुम्हारे यह डायलॉग्स न...। पिछले जन्म में कालिदास तो नहीं थे?” “तुम अगर मल्लिका थी तो शायद।” उसके गाल खींचते हुए मैंने कहा। “तुम
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पंडित जी की कही मानें तो शराब, चरस, गाँजा, अफ़ीम- सब छोटी चीज़ें हैं। सबसे बड़ा नशा है धर्म का। फूँकता एक है, असर आसपास के पचास लोगों को होता है। जैसा
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एक्ज़ाम का एक फ़ायदा यह होता है कि कोई आपको ज़्यादा कुछ बोल नहीं पाता। अब मैं अपनी मर्ज़ी का मालिक था। मन आता तो नहाता, नहीं तो नहीं। जहाँ मन किया तौलिया फेंका, जहाँ मन किया किताबें रख दी। पूरी तरह से बेडरूम को हॉस्टल के कमरे सामान गंदा कर छोड़ा था। पर यह मंज़र मैडम से ज़्यादा दिन देखा न गया।
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“तानाशाही! नहीं चलेगी, नहीं चलेगी।” का नारा लगाकर मैं अगर ख़ुद पर लग रही पाबंदियों का विरोध करता तो वह स्कूल के किसी हैडमास्टरनी की तरह मुझे डाँट-डपटकर चुप करा दिया करती। हाई कमांड के निर्देश अनुसार कविता, कहानी लिखने पर बैन था। सारा ध्यान सिर्फ़ और सिर्फ़ पढ़ाई पर।
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अपने चश्मे से सबको दूसरो का सच झूठ जान पड़ता है और खुद का झूठ सच। किसी को खुद में कुछ गलत नज़र नहीं आता। आता है तो आईना बदल लेते हैं। आईना जो वही दिखाए जैसा वे देखना चाहते हैं। आईना जो वही बताए जो वे सुनना चाहते हैं। आईना उन्हें मूर्ख बनाता है और वो ज़माने को।
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पता ही नहीं चला कि कब उन दोस्तों को दीमक मान बैठा-मानो मेरे ज़रूरी वक़्त को किसी तवायफ़ का जिस्म समझकर खा जाएंगे। उससे
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को ही कृष्ण बनाना होगा और ख़ुद को ही अर्जुन। मुश्किल था। पर करना तो था ही। या तो ज़िंदगी भर रोया जा सकता था, बहाने बनाए जा सकते थे या हमारे उस सपने को पूरा करके दिखाया जा सकता था। जीत की दास्ताँ सुनना सब को अच्छा लगता है, असफलता के पीछे का रोना कोई सुनना नहीं चाहता।
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‘चाहे जो हो, रगड़कर पढ़ना है। घिसना है। और अबकी बार फोड़ना है। पढ़ाई तो करेंगे ही, अब प्लानिंग भी करेंगे। इस साल हम ही टॉप करेंगे।’ मैंने दृढ़ निश्चय कर लिया था।
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दुनिया जैसे एक आईना हो। जिस नज़र से आप चीज़ों को देखते हो दुनिया भी कुछ वक़्त बाद आपको उसी नज़र से देखने लगती है। कितने अजीब हैं हम इंसान भी। जिन सवालों को जवाब छुपे जीवन में, उन्हें हिमालय में ढूँढ रहे हैं।
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मैंने अपनी गृहस्थी आने वाले महीनों के लिए वहीं लाइब्रेरी में बना ली थी। टेबल को दीवार से चिपका रखा था। अगल-बग़ल किताबों का ढेर लगाकर हर तरफ़ से ख़ुद को क़ैद कर रखा था- किसी भी तरह से नज़र को भटकने से बचाने के लिए। अघोरी साधु की तरह दाड़ी, बाल सब बढ़े हुए। हफ़्ते में एक-आधा बार कभी नहाना। गज़नी के आमिर ख़ान की तरह हाथ और सीने पर पेन से ज़रूरी फ़ैक्ट्स गोद रखे थे। ताकि कपड़े बदलते वक़्त कभी नज़र पड़े तो याद रहे। करंट अफ़ेयर्स के लिए आल इंडिया रेडियो पर हर शाम चाय के साथ न्यूज़ सुनता और रात को न्यूज़ एनालिसिस। बिपिन चंद्र से लेकर रामचंद्र गुहा, मिश्रा-पूरी से लेकर Goh Cheng Leong, सब दोस्त बन ...more
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सिनेमा महज़ 250 रुपये देकर एंटरटेनमेंट ख़रीदना नहीं। जानने की कोशिश कीजिए वह कौन लोग थे जिन्होंने आपको ढाई घंटे कुर्सी पर बाँधकर रखा। जो मन की खिड़की से सपनों की उड़नतश्तरी में बैठाकर आपको किसी जादूई दुनिया में ले गए। और ज़िंदगी को तमाम रसों से भर दिया। जिन्होंने प्यार करना सिखाया, रिश्ते की अहमियत समझाई और उस प्यार को पाना भी सिखाया। कभी टूटे दिल पर मरहम लगाया, कभी जीने की नयी राह दिखाई। खुली आँखों से सपने देखना सिखाया। और उन ख्वाहिशों को पूरा करना भी सिखाया।
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कुछ नहीं आने पर भी सब कुछ लिखकर आने की आदत थी- उसे बदला। आंसर की प्रॉपर फ़्रेमिंग जानी। छोटे से पैराग्राफ़ में इंट्रोडक्शन फिर उसका विस्तार और अंत में मेरे ‘two cents’। हर उत्तर में डायग्राम, फ़्लो चार्ट या मैप बनाने की आदत डाली। अंडरलाइन करके ज़रूरी प्वॉइंट को हाईलाइट किया। स्पीड बढ़ाई। पढ़ाई के प्रेशर के बावजूद अपना ‘कूल’ बनाये रखा। सब पेपर्स पिछली बार से कहीं बेहतर गए।
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लत बुरी होती है- चाहे सिगरेट की हो या फिर इश्क़ की।
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मेरे मन में आंतरिक उथल-पुथल से ग्रस्त एक छत्तीसगढ़ जा बसा था और एक कश्मीर भी-जो तनाव की बाहरी घुसपैठ से ख़ुद को बचा पाने में अक्षम था। एक पंजाब भी, जो नशे में चूर होकर अपने सभी गम भूल जाना चाहता था। मुझे वो अब तक अपनी मुट्ठी में भींचकर रखती थी, जैसे कि मैं कोई तितली हूँ, जो उड़ जाऊँगा। पर मैं अब उसकी नरम हथेलियों की क़ैद में रहना चाहता था, ज़िंदगी भर। मुझे आज़ादी की सज़ा नहीं चाहिए थी।
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“ज़िंदगी में यदि सच्चा प्रेम ही नहीं किया तो समझो कि जीवन निरर्थक है तुम्हारा। यानी कि तुम उन समस्त वेदनाओं से अछूत रह गए,जिसका सृजन ईश्वर ने मनुष्य मात्र के लिए किया है। ठीक है मान लिया कि प्यार-व्यार का चक्कर आसान नहीं होता। मगर फिर भी जब पछताना है ही, तो शादी का लड्डू ख़ाकर पछताओ। कम-से-कम अपने नाती-पोतों को सुनाने के लिए कहानी तो बनेगी। अगर अपने प्यार के लिए ज़माने से न लड़े, बगावत ही न की तो फिर साला कैसा प्यार? धिक्कार है।”
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“देखो भाई, लड़कियों पर तो कतई भरोसा नहीं किया जा सकता। कितनी बार समझाया था तुम्हें, पर तुम्हारे भेजे में कुछ नहीं घुसा ... पर ये प्रॉब्लम सिर्फ तुम्हारी नहीं है... संजय के साथ भी यही हुआ... मेरे साथ भी... प्रॉब्लम न हम लड़कों की है। हमारी पूरी प्रजाति ही मूर्ख है। हम मर्द लोग अपने सीने पर जो तमगा लगाए घूमते हैं ना- ‘लड़की पटा ली, देख तेरे भाई ने’, यह निहायत मूर्खता है। हम बेवक़ूफ़ ये नहीं समझ पाते कि पटाती हमें वो हैं। हम अगर पटा सकते तो जिसे चाहे पटा लेते। पर पटती वही है जो पटना चाहती है। तुम को कितनी लड़कियों ने इग्नोर किया होगा, पर क्या तुम अब तक एक भी लड़की को इग्नोर कर पाए हो? नहीं न ! ...more
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इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया, वर्ना हम भी आदमी थे काम के।”
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एक शराबी को एक बोतल दिखाओ, वह शायद उसे पीने का लालच न दिखाए। एक चेन स्मोकर को सिगरेट दिखा दो या फिर किसी नशेड़ी को चरस-वह भी शायद देखकर दूर भाग जाए। पर अगर एक चोट खाए आशिक़ को बावरी बसन्ती हवा का एक झोंका मिल जाए, तो वह उसमें भी अपनी महबूबा
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के लिए महल बना लेगा और अपना सब कुछ भूलकर उस में जाकर रहने लगेगा।