देंगे। मरने की भी एक सीमा होती है, मारने की भी एक सीमा होती है; वरना मारने वाले तो दुनिया के इतिहास में कितने हुए! पलट कर देखिए। फिर भी इनसान ख़त्म नहीं हुए, मारने वाले ही ख़त्म हो गए। जो भी पावर में बैठता है, उसे यह डर सताता है। आप में से भी कोई सत्ता में बैठेगा तो आपको भी यह डर सताएगा। उनका डर वाजिब है, क्योंकि उनके पास अब कोई ऐसा फ़ॉर्मूला नहीं बचा है, प्रोपगैंडा और इवेंट के अलावा।