मीडिया की भाषा में दो तरह के नागरिक हैं—एक तो नेशनल और दूसरे, एंटी-नेशनल। एंटी-नेशनल वह है जो सवाल करता है, असहमति रखता है। असहमति लोकतंत्र और नागरिकता की आत्मा है। उस आत्मा पर रोज़ हमला होता है। जब नागरिकता ख़तरे में हो या उसका मतलब ही बदल दिया जाए, तब उस नागरिक की पत्रकारिता कैसी होगी?