वे बेक़सूर थे। उनका क़सूर था तो सिर्फ़ इतना कि जब यह सब हो रहा था, तब वो सो रहे थे; और जब यह सब हो चुका है तब भी वे सो ही रहे हैं। नौजवान लड़के-लड़कियों ने यह समझना ही छोड़ दिया कि एक व्यवस्था के तहत उन्हें लाखों की फीस देकर इंजीनियर बनने के लिए मजबूर किया गया और उसके बाद उन्हें दस हज़ार की नौकरी भी नसीब नहीं हुई।