लाती हैं कि हिटलर और ना ज़ियों का शुद्ध ‘श्रेष्ठ नस्ल’ में भरोसा रखना कोई ख़ास बात नहीं थी। ख़ास बात तो यह थी कि ‘अवांछित समूहों’ की पहचान करने की प्रक्रिया में जर्मन समाज के विभिन्न तबकों में से वैज्ञानिक, डॉक्टर, नृतत्त्वशास्त्री, इंजीनियर, छात्र आदि भी जोश-ओ-ख़रोश से शामिल थे। वे अपने देश से ‘राष्ट्रद्रोहियों’ का सफ़ाया कर रहे थे।